चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

चन्द्रगुप्त मौर्य भारतीय इतिहास के महानतम सम्राटों में से एक थे, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की और भारत को पहली बार एक संगठित अखंड साम्राज्य के रूप में एकीकृत किया।

चन्द्रगुप्त मौर्य

चन्द्रगुप्त मौर्य (३४० ई.पू.–२९८ ई.पू.) भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट थे जिन्होंने मौर्य वंश की स्थापना की। उनका राज्याभिषेक लगभग ३२१ ई.पू. में हुआ और उन्होंने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र से शासन किया। वे महान रणनीतिकार, कुशल प्रशासक और अद्भुत सेनापति थे। चाणक्य (कौटिल्य) के मार्गदर्शन में उन्होंने नंद वंश को परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप को एक विशाल साम्राज्य में एकीकृत किया।

जीवन और प्रारंभिक दौर
  • जन्म: चन्द्रगुप्त का जन्म लगभग ३४० ई.पू. में मौर्य वंश में हुआ। उनका जन्म साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी।
  • चाणक्य से भेंट: चन्द्रगुप्त की भेंट तक्षशिला विश्वविद्यालय में चाणक्य से हुई। चाणक्य ने उन्हें प्रशिक्षित किया और भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने का संकल्प कराया।
  • नंद वंश का अंत: चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर नंद वंश का अंत किया और मगध पर अधिकार कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
शासन और उपलब्धियाँ
  • साम्राज्य विस्तार: चन्द्रगुप्त ने उत्तर भारत से लेकर अफगानिस्तान तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। यूनानी सेनानायक सेल्युकस निकेटर को भी उन्होंने पराजित किया।
  • कूटनीति और प्रशासन: चाणक्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” के सिद्धांतों पर आधारित उनका शासन प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत संगठित और प्रभावशाली था।
  • मौर्य साम्राज्य: उनके शासन में भारत पहली बार एक राजनीतिक एकता के रूप में उभरा। उन्होंने मजबूत सेना, न्याय व्यवस्था और राजस्व प्रणाली स्थापित की।
अंतिम जीवन और जैन धर्म में दीक्षा
  • वृद्धावस्था में चन्द्रगुप्त ने राजपाट त्याग दिया और जैन आचार्य भद्रबाहु के शिष्य बन गए। उन्होंने कर्नाटक के श्रीश्रवणबेलगोला में तपस्या द्वारा देह त्याग किया (२९८ ई.पू.)।

जीवन परिचय और समयरेखा

चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत के इतिहास में वह युग आरंभ किया जब भारत पहली बार एक एकीकृत साम्राज्य के रूप में उभरा।

३४० ई.पू.

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म मौर्य वंश में हुआ।

३२१ ई.पू.

नंद वंश का अंत कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

३०५ ई.पू.

सेल्युकस निकेटर को पराजित कर सिंधु से अफगानिस्तान तक का क्षेत्र जीता।

३०० ई.पू.

राजपाट अपने पुत्र बिंदुसार को सौंपा और जैन धर्म में दीक्षित हुए।

२९८ ई.पू.

श्रीश्रवणबेलगोला में तपस्या द्वारा देह त्याग।

प्रमुख सिद्धांत और विरासत

कुशल नेतृत्व

चन्द्रगुप्त का शासन दूरदर्शी और न्यायसंगत नेतृत्व का उदाहरण था।

रणनीतिक कौशल

चाणक्य के सहयोग से उन्होंने भारत को राजनीतिक रूप से एकजुट किया।

प्रशासनिक उत्कृष्टता

उनका शासन अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र पर आधारित था।

उपलब्धियाँ और धरोहर

चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत को एकीकृत कर शक्तिशाली बनाया। उनका साम्राज्य प्रशासनिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध था।

उन्होंने भारतीय राजनीति में स्वराज, नीति और शांति का आदर्श प्रस्तुत किया। उनके शासनकाल की व्यवस्था और सिद्धांत आज भी प्रशासन के आदर्श माने जाते हैं।

"जिस राज्य में नीति और न्याय सर्वोपरि हो, वही सच्चे अर्थों में साम्राज्य कहलाता है। – चन्द्रगुप्त मौर्य"
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